Posts

हे स्त्री तुम्हें प्रणाम

Image
शक्ति, सांस, ऊर्जा, प्रेरणा, भक्ति, आशा,  उम्मीद, उमंग, ममता, जीत, प्रीत और ज़िन्दगी... ये सारे वो शब्द हैं जिनके बिना मानव अधूरा है... और इन सभी शब्दों का मूल हो 'तुम' "हे स्त्री तुम्हें प्रणाम ।" # Happy_Womans_Day

सुबह आती ही है...

दिन को रोका गया, छीन ली गई रौशनी की हर किरण शाम आई, रात को लाई रात गहराई.... और देखो, फिर सुबह आ गई... सुबह आती ही है देर से..अंधेर से।

तुम मुस्कुराती हो तो..

सुनो तुम मुस्कुराती हो तो लगता है कि, उम्मीद की दुनियां अब भी ज़िन्दा है.. और अब भी सबकुछ उतना बुरा नहीं हुआ, जितना की ख़बरों में दिखता है... अब भी सूरज को निहारा जा सकता है अब भी पहाड़ों को पुकारा जा सकता है अब भी नदियों में नहाते हुए फोटो खिंचाई जा सकती है वो फोटो जो सिर्फ़ फेसबुक के लिये ना हो, बल्कि एक याद भी हो.... अब भी चिड़ियों के साथ गुनगुनाया जा सकता है अब भी अजनबियों से अपनापन जताया जा सकता है अब भी पड़ोसियों को गले लगा कर बधाईयाँ दी जा सकती हैं बिना किसी शक़ या संकोच के और अब भी छोटी छोटी कोशिशों से किसी रोते हुए चेहरे को, हँसाया जा सकता है... तो सुनो, मुस्कुरा दिया करो ना प्लीज... क्यूंकि इस वक्त मुझे और दुनियां, दोनों को ही, उम्मीदों की बहुत ज़रूरत है।

ख़ामोशी भी बोलती है...

Image
ख़ामोशी भी बोलती है... सुन पाओगे तुम.... ?? झुकी हुई पलकें.. कांपते हुए होंठ... उखड़ती हुई साँसें... बहती हुई आँखें... ठहरे हुए कदम... दबे हुए से गम... सब बोलते हैं... इन अहसासों के धागों को बुन पाओगे तुम...??? हाँ ..ख़ामोशी भी बोलती है.... सुन पाओगे तुम...???? 

सुबह के वो पल

Image
बरसाती सुबह... मखमली अहसास... तुम्हारी आवाज़... ज़िन्दगी, कुछ पल ठहर गई हो जैसे।

ME v/s ME

मुझसे बसते 2 'मैं', वैसे ही जैसे बसते हैं सब में आज लड़ बैठे एक दूसरे से, आपस में ही... एक 'मैं', जो दुनियां से ज़रा ज्यादा प्रभावित है, दूसरे से बोला - "अच्छा !! तुम आज भी इश्क़ में यक़ीन करते हो.., भावनाओं में यक़ीन करते हो, सच में यक़ीन करते हो ?? अबे जाओ बे...फिर तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता..." दूसरे 'मैं' ने पहले 'मैं' को अपनी मुहब्बत में डूबी आँखों से देखा और बोला- "ख़ामोश...अगर मैं चला गया..,तो तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता" वाक़ई...कुछ नहीं हो सकता ।

जल्दी सूरज निकलेगा....

Image
जल्दी सूरज निकलेगा… मन के भीतर एक धधकता ज्वालामुखी विचारों का, बीच भंवर में कश्ती उलझी, पता नहीं पतवारों का, रोक रहे हैं आशाओं को, अवरोधों के आतंकी मार रहे फुफकारें देखो,अवसादों के विषदंती जीवन पथ के गलियारों में असमंजस का डेरा है नज़र नहीं आने देता कुछ चारों तरफ अँधेरा है पर कितना भी हो सघन अँधेरा, एक किरण से पिघलेगा जल्दी सूरज निकलेगा.... रात भयानक कितनी भी हो, प्रातः का हो जाना तय तम को चीर के किरणों का इस अम्बर पे छा जाना तय ग्रीष्म ऋतू में कितना भी तपना पड़ जाये धरती को पर तपने के बाद धरा पर, बरखा-शीत का आना तय क्षण बदले हैं, दिन बदले हैं, युग भी सदा बदलते हैं  कष्टों के यौवन, जीवन में इक न इक दिन ढलते हैं  कुछ भी स्थिर नहीं यहाँ तो, दुःख का समय भी बदलेगा.... जल्दी सूरज निकलेगा....